...लम्हा लम्हा ठहरा हुआ, लम्हा लम्हा बह रहा
इंदौर के सिरपुर तालाब पर सप्ताहांत की छुट्टी के कुछ घंटे बीते, अपने साथ बीते- वह वक्त कुछ यूं रहा, जो मेरे कैमरे में ठहर गया।
अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब?
खोजते सौन्दर्य नया?
देखते क्या दुनिया को?
रहते क्या, रहते हैं
जैसे मनुष्य सब?
क्या करते कविगण तब?
#त्रिलोचन
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जब से निकली हूँ प्रवास पर
नहीं देखा है मैंने
अपना सूरज, अपनी सुबह
अपनी रातें और अपना दिन
सब तुम्हारे है, तुम्हारे दिए हुए
#प्रतिभा गोटीवाले
मन ऊब गया
मन के ऊबने से भी
मन ऊब गया
अब तो ऊबा
अंतिम बार
अब जो मिलेगी मुझे खुशी
खुशी होगी यह
पहली बार
अब जो उगेगा
अंतिम सूरज
उगेगा पहली बार
अंतिम बार डूबेगा सूरज
डूबेगा आखिरी बार
#विनोद कुमार शुक्ल
बैठ लें कुछ देर,
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द ।
#महा प्राण निराला
प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूं ! वह गया जग मुग्ध सरि-सा मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ! तुम विमुख हो, किन्तु मैं ने कब कहा उन्मुख रहो तुम? साधना है सहसनयना-बस, कहीं सम्मुख रहो तुम! #अज्ञेय |
जो कुछ अपरिचित है वे भी मेरे आत्मीय हैं मैं उन्हें नहीं जानता जो मेरे आत्मीय हैं । कितने लोगों, पहाड़ों, जंगलों, पेड़ों, वनस्पतियों को तितलियों, पक्षियों, जीव-जन्तु समुद्र और नक्षत्रों को मैं नहीं जानता धरती को मुझे यह भी नहीं मालूम कि मैं कितनों को नहीं जानता । सब आत्मीय हैं सब जान लिए जाएंगे मनुष्यों से मैं मनुष्य को जानता हूं । #विनोद कुमार शुक्ल |
जाते जाते ही मिलेंगे लाेग उधर के जाते जाते जाया जा सकेगा उस पार जाकर ही वहां पहुंचा जा सकेगा जो बहुत दूर संभव है पहुंचकर संभव होगा जाते जाते छूटता रहेगा पीछे जाते जाते बचा रहेगा आगे जाते जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा और कुछ भी नहीं में सब कुछ होना बचा रहेगा #विनोद कुमार शुक्ल
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खूबसूरत चित्र और उतनी ही खूबसूरत पंक्तियां।
ReplyDeleteशुक्रिया सर
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